|
|
प्रेम ही ईश्वर है Love is God. God is Love. |
योग पद्धति >> योग का क्रम >> दु:स्वप्न (बुरे सपने), सपनों के अर्थ (Dream Interpretation) साधना में विघ्न सूचक स्वप्नों/दु:स्वप्नों के उपायइस प्रकार विघ्न सूचक दू:स्वप्न प्राप्त होने पर साधक को उसके निवारण का उपाय अवश्य करना चाहिए.जिससे उसका फल प्रकट न हो सके और साधना में कोई व्यवधान (रुकावट) उत्पन्न नहीं हो. इसके लिए शास्त्रों में कई उपाय बताये गए हैं, जैसे दु:स्वप्न को देखकर यदि नींद खुल गई हो तो ईश्वर का स्मरण कर पुनः सो जाना चाहिए, इससे बुरे सपने का फल प्रकट नहीं होता. कई बार बुरे सपने के बाद नींद नहीं खुलती या सुबह जल्दी बुरा सपना दिखाई देता है और हम उठ जाते हैं तो प्रातः स्नान करके ईश्वर को अपना बुरा सपना कह सुनाएँ और उनसे प्रार्थना करें कि इस बुरे सपने का फल प्रकट नहीं हो. अब बुरा सपना भी शुभ फल दायक हो जाए इसका उपाय बताते हैं : उपाय १ : भगवान के इन १२ नामों का १२ बार स्मरण करें : विष्णुं नारायणं कृष्णं रामं च श्रीहरिं शिवम् | श्रियम लक्ष्मीं राधिकां जानकीं प्रभां च पार्वतीम || उपाय २ : ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं दु:ख-हन्त्यै दुर्गायै ते नमः स्वाहा | इस दुर्गा मंत्र का १० बार जप करें. अथर्व वेद में वर्णन है कि दु:स्वप्न दक्षिण-पश्चिम दिशा के स्वामी निऋति व भगवती काली का पुत्र है. मन्त्रों द्वारा दु:स्वप्न से प्रार्थना की जाती है कि वह चला जाए और हमारे पास लौट कर फिर कभी नहीं आये. इसी प्रकार भगवती काली के स्मरण व दुर्गा सप्तशती में वर्णित तन्त्रोक्तं रात्रिसूक्तम के पाठ से भी दु:स्वप्न का फल प्रकट नहीं होता या उलटे शुभ फल प्रकट होता है. क्योंकि काली दु:स्वप्न की माता कही गई हैं और जब हम उसकी माता से प्रार्थना करते हैं तो वे ही दु:स्वप्न को अपने भक्त की साधना में विघ्न न उत्पन्न करने का आदेश देती हैं. ऐसा देखा गया है कि जिन साधकों के घर में दक्षिण-पश्चिम भाग में कोई दोष होता है वे दु:स्वप्नों से पीड़ित रहते हैं. अतः वे भगवती काली की भी आराधना करें. उपरोक्त दु:स्वप्नों में से कुछ स्वप्न मृत्युकारक भी होते हैं वह हम बता चुके हैं. मृत्युकारक स्वप्नों का फल मृत्यु ही है. यदि मृत्यु हो गई तो साधना बहुत लम्बे समय (अगले जन्म) तक के लिए रुक जायेगी, जीवात्मा को बहुत कष्ट सहना पड़ेगा. इससे बचने के लिए साधक को चाहिए कि वह सदा तैजस ब्रह्म या शब्द ब्रह्म का अभ्यास करें. इनका वर्णन हम ध्यान की विधियों में पहले ही कर चुके हैं.
अध्यात्म और योग का सबसे ऊँचा ज्ञान शिव सूत्र से निकालकर कहानी और गाने "झूठ पुलिंदा" के माध्यम से आप सभी भक्तों को समर्पित है. एक विधि और इस प्रकार है कि सुखासन में बैठकर जिह्वा को उलटी पीछे मोड़कर ब्रह्म रंध्र पर लगाएं और ॐ का जप करें. इस प्रकार मृत्य्कारक पीड़ा भी शांत हो जाती है. मृत्युकारक पीड़ा उत्पन्न होने पर श्वास को लेने व छोड़ने में कठिनाई का अनुभव होने लगता है. अतः प्राणों का सदा अवलोकन करते रहें और जैसे ही ऐसी कोई कठिनाई अनुभव हो प्राणायाम करें. मन में ईश्वर के सहस्रबाहु रूप का ध्यान करें व मंत्र जप करें और प्राण को भीतर भर कर रोक लें. इसमें धारणा या ईश्वर से प्रार्थना यह रखें/करें कि ईश्वर हमें इस मृत्युकारक पीड़ा से छुटकारा दिलाएं. विघ्न सूचक स्वप्न/दु:स्वप्न (बुरे सपने) और उनके अर्थ फ्री ऑनलाइन आध्यत्मिक कोर्स जॉइन करे
|
Free Download Sundarkand Hindi MP3 and Other Bhajans
|